Revision: 96
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Author: karunakar
Date: 2014-03-22 11:38:28 +0000 (Sat, 22 Mar 2014)
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+Some samples from
+http://mail.sarai.net/pipermail/deewan_mail.sarai.net/2011-February/002957.html
+
+"ओह क्या बताएँ, उस दिन चंदू के ताऊश्री शाहख़र्च चच्चा छक्कन के साथ चाँदनी चौक दिल्ली में स्वर्णद्रव्य देके रबड़ी-फ़लूदा-लड्डू का पञ्चरङ्गा मिष्टान्न डकारा, ठाठ से टट्टू चढ़े, स्कॉच ढाला, ऑर्केस्ट्रा पर ग़ज़ल सुनी, तथैव हमारी बुभुक्षा तृप्त हुई, तदुपरान्त अंत:ज्ञानी औघड़ ऋषि का भाषण ऐसा झंड रहा, धत्तेरेकी, सुरूर उड़ा, त्रस्त हुआ!"
+
+"ताऊश्री अर्थात चच्चा छक्कन ने चंदू के लिए चाँदनी चौक, लाल क़िले, दिल्ली पर इमली की चटनी संग गुलाब जामुन, छोले-पठूरे, लड्डू-पेड़े का षडरस व्यञ्जन खिलाया, फिर फ़ुरसतन भंग ख़रीदी, डिठौना लगाके घोड़ा चढ़ाया, मृदङ-ढोलक की थाप पर ग़ज़ल सुनवाई, तथैव उसकी बुभुक्षा तृप्त हुई, प्यास बुझी, त्राण पाया, जन्नत के दर्शन हुए; अंतत: बुड्ढे से ज्ञान मिला, धत्तेरे की,आया सुरूर गया!"
+
+"चंदू के चाचा ने, चंदू की चाची को चांदनी चौक पर चाँदी की चम्मच से आँवले और बैंगन
+ की चटनी, खीर, गुड़, घी, भांग, छोले, जाम, झाल-मुढ़ी, टमाटर, पाव-भाजी आदि
+ व्यंजन धीरे-धीरे थोड़ा-थोड़ा फुरसत... से सोने की थाल से उठा उठा के हरी मिर्च के
+ साथ चटाया, फिर शोले की धन्नो की घोड़ी पर, तबले की ताल पर, डंके की चोट
+ पर, डमरू की डम डम पर, ढोलक की ढम ढम पर ठुमरी गवाया, अंततः, ऐ मित्र
+ ज्ञान चक्षु खुले या मौका ए वारदात पर त्राहिमाम त्राहिमाम चिल्लाया।"
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